1. |
गुलाबख़ास, खासुलख़ास आम और महाकवि निराला जी का प्रतिदान |
आम हिंदुस्तान का ख़ास मेवा है: |
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2. |
अभिशंसा |
कविता सौन्दर्य की सृष्टि है |
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3. |
एकता का दर्शन और प्रदर्शन |
एकता आत्मीयता का प्रतीक है| |
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4. |
गाँधी जी का हरिजन-भाव: एक नयी उद्भावना |
हरिजन जानि प्रीति अति बाढ़ी। |
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5. |
गाँधी जी और कला |
जिसकी पृष्ठभूमि पवित्र नहीं है वह वास्तविक कला नहीं है। |
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6. |
गाँधीवादी कला-दृष्टि मूलतः आकाश-दृष्टि थी। |
गाँधी और गाँधीवाद की कला-दृष्टि |
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7. |
कृष्णाय तुभ्यं नमः |
भारतीय संसकृति पंचदेवों पर केंद्रित है | |
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8. |
मैत्री और मानवता के प्रतिमान: शर्मा जी |
मैत्री और मानवता के प्रतिमान |
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9. |
मेरी दृष्टि में नयी कविता |
नयी कविता से मैं अनेक रूपों में सम्बद्ध हूँ। |
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10. |
नागवासुकि मंदिर और प्रयाग में नागपूजा की परम्परा |
सामान्यतया नाग और सर्प समानार्थी समझे जाते हैं |
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11. |
नयी कविता और फैण्टेसी की मानसिकता |
नयी कविता और फैण्टेसी की मानसिकता खड़ी बोली में आदि-स्त्रोत की तलाश |
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12. |
नंदलाल वसु के कला-सम्बन्धी विचार |
नंदलाल वसु ने कला-सम्बन्धी दो पुस्तकें 1. शिल्प-कथा 2. शिल्प-चर्चा |
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13. |
नई कविता और आचार्य शुक्ल के रसानुभूति के विविध स्तर |
यह दृष्टि ऋषि-दृष्टि है | |
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14. |
जीवन-मुक्त |
जब भी स्वयं इस कविता को पढ़ता हूँ तो निराला जी का सजीव चित्र उनकी सारी भाव-भंगिमाओं के साथ सामने आ जाता है| |
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15. |
निराला के स्वगत |
कवि स्वभावतः अपने अंतरग जीवन में विशेष संवेदनशील एवं सक्रिय रहता है, पर निराला जी इस विशेष से भी कुछ अधिक विशेष थे| |
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16. |
छायावादोत्तर दो प्रमुख काव्य-प्रवृत्तियाँ |
प्रगतिवाद और प्रयोगवाद |
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17. |
रवीन्द्रनाथ की चित्रकला |
विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कलाप्रियता |
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18. |
स्थिति, गति और प्रगति |
क्रियान्तर विश्रान्तिः लयः |
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19. |
साहित्य और संस्कार |
साहित्य व्यक्ति और समाज की समन्वित चेतना से उत्पन्न होता है |
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20. |
टेराकोटा का अद्भुत संग्रह और डा0 गुप्त का तहखाना |
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21. |
विदुर-नीति और गीता: तुलनात्मक दृष्टि से विचारणीय संदर्भ |
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22. |
वे पाँच चित्र |
सच्ची कलाकृति के रंगो में शिल्पी का रक्त मिला रहता है |
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23. |
तुलसी का कवि-व्यक्तित्व |
तुलसी-साहित्य के गंभीर अध्येता के लिए अब युगीन संदर्भों की पृष्ठभूमि में सूक्ष्म विश्लेषण एवं विवेचन द्वारा उसके संश्लिष्ट तत्वों को स्फुट और स्पष्ट करने की समस्या सर्वोपरि प्रतीत होती है| |
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24. |
साहित्य-पुरुष द्विवेदी जी |
बिरही गन देख के रोते रहे, प्रिय प्रेमी निजत्व को खोते रहे । |
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25. |
धर्मवीर भारती - आत्मीय सन्दर्भ |
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26. |
एकता का दर्शन और प्रदर्शन |
वैर का शमन ज्ञान के विकास से होता है| पर संकीर्णता के आड़े आ जाने से कठिनाई उत्पन्न हो जाती है| |
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27. |
गाँधी और गाँधीवाद की कला-दृष्टि |
गांधी का मानववाद इसीलिए विदेशों की परिभाषाओं से नापा नहीं जा सकता। कला के संदर्भ में भी उनकी मानववादी दृष्टि वैष्णव संस्कारों से अनुप्रेरित रही है। |
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28. |
गाँधी जी और कला |
अपने समस्त अनुभवों के उपरान्त मैं यह बात कह सकता हूँ कि जीवन की पवित्रता सबसे बड़ी और सच्ची कला है। |
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29. |
गाँधी जी का हरिजन-भाव |
रामचरितमानस में विभीषण को हनुमान ने हरिजन मानकर और राक्षसों से भिन्न व्यवहार किया —“हरिजन जानि प्रीति अति बाढ़ी।” |
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30. |
नयी कविता:आचार्य शुक्ल |
हिंदी में कम ही ऐसे विद्वान हैं जिन्होंने रसात्मक अनुभूति के स्वरूप और स्वभाव को लेकर गम्भीर चिंतन किया हो | |
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31. |
प्रगतिवाद-प्रयोगवाद |
छायावादोत्तर दो प्रमुख काव्य-प्रवृत्तियाँ - प्रगतिवाद और प्रयोगवाद |
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32. |
“कवि-दिवस” |
3 अगस्त,1988 को उपराष्ट्रपति-निवास, नई दिल्ली में हिंदुस्तानी एकेडमी द्वारा अयोजित “कवि-दिवस” समारोह में भाषण— |
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33. |
बाल कला |
प्रागैतिहासिक कला से बाल कला का उतना साम्य नहीं है जितना आदिम कला और लोक काल से, किन्तु प्रागैतिहासिक कला अपनी प्रकृति में अधिकांशतः आदिम और अपने परिवेश में लोक कला के अत्यन्त समीप रही है अतः बाल कला से उसका तुलनात्मक अनुशीलन निराधार भी नहीं कहा जा सकता |
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34. |
चित्रकार, कवि मोलाराम |
मोलाराम को अपनी चित्रशाला, चित्रांकन और दर्शनशात्र से अधिक प्रेम था | धार्मिक विषयों पर तथा दर्शनशात्र पर मोलाराम ने जो रचनाएं की हैं वह ऐतिहासिक काव्य से दस गुनी अधिक है | |
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35. |
वाद-मुक्त काव्य-दृष्टि के उद्घोषक आचार्य शुक्ल |
उनकी उद्घोषणा है कि काव्य में किसी वाद का प्रचार धीरे-धीरे उसकी सारसता को ही चर जाता है | |
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36. |
डॉ.हरदेव बाहरी के सम्मान में |
सांस्कृतिक दृष्टि से सिंध और पंजाब के विस्थापित लोग पूरे देश में व्याप्त हो गये और भारतीय संस्कृति को एक नया आयाम मिला |
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37. |
रेखाओं के कुशल शिल्पी : डॉ.जगदीश गुप्त |
‘नाव के पाँव’ के अतिरिक्त ‘शब्द दंश’ ‘हिमविद्ध’ आदि संकलनों के अतिरिक्त नईकविता के एक से लेकर आठ अंक तक का सम्पादन मैंने किया है , परिमल के संयोजक के रूप में भी मैं कार्य कर चुका हूँ |
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38. |
ब्रजभाषा में नायक-नायिका-भेद |
रीतिकालीन कवियों ने अपनी रचनाओं में श्रृंगार रस का सारा विस्तार आलम्बन विभाव के अन्तर्गत नायिकाओं के भेदोपभेद को लेकर खड़े किये गये इसी ढाँचे के आस पास किया है। कुछ ने तो केवल इसी को मुख्य विषय बनाकर स्वतन्त्र ग्रन्थों का निर्माण किया है। किन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से देखने पर ज्ञात होता है कि मूलतः यह विषय काव्य-शास्त्र से सम्बद्ध नहीं था और न शास्त्र-निरूपण में इसको कोई महत्वपूर्ण स्थान ही प्राप्त था। |
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39. |
पाने और खोने की कल्पना |
मैं नहीं मानता कि अशिक्षा और गरीबी ऐसे मुद्दे नहीं थे कि जिससे देश व्यापी आंदोलन खड़े नहीं खड़े नहीं किये जा सकते थे, पर विदेशों की मानसिक गुलामी और अंग्रेजों की जोड़-तोड़ वाली कूटनीति से मुक्ति पाने की हमने चेष्टा नहीं की | |
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40. |
सीता की अग्नि-परीक्षा : रामकथा का एक प्रसंग |
रावण तुम्हें अकेले में अपनी गोद में उठाकर ले गया था और तुम पर दूषित दृष्टि भी डाल चुका है, अतएव अब मेरी तुम्हरे प्रति कोई ममता या आसक्ति नहीं है | तुम लक्ष्मण, भरत, शत्रुघन, सुग्रीव, विभीषण में से जिसके भी संरक्षण में रहना चाहो सुखपूर्वक रह सकती हो | |
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41. |
नवल किशोर |
55 राजस्थान साहित्यकार प्रस्तुति नवल किशोर |
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42. |
रामराज्य अदर्शों का आदर्श है |
गाँधीजी के कारण ही काँग्रेस रामराज्य की देश व्यापी कल्पना की पक्षधर बन गयी अन्यथा नेहरू की विचारधारा “ डिस्कवरी ऑफ इंडिया” के रास्ते चलकर लोकतंत्र एवं प्रजातंत्र को सर्वोपरि आदर्श मानने लगी थी | |
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43. |
एक काव्यात्मक सीमा-विवाद |
दूसरा श्लोक सीमा-विवाद से आगे बढ़कर सीमा-संकट की मौलिक परिकल्पना प्रस्तुत करता है, जो कम वैचित्र्य-युक्त नहीं है | |
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44. |
फ़ादर बुल्के : मेरे गुरु भाई |
एक बार मैंने बुल्के जी से पूछा—“ आप को भारत आने की प्रेरणा कैसे हुई ? उत्तर सुनकर विस्मित रह गया | उन्होंने बताया तुलसी की इस चौपाई का जर्मन अनुवाद पढ़कर—” “धन्य जनम जगतीतल तासू | पितहिं प्रमोद चरित सुनि जासू ||” |
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45. |
खड़ी बोली के काव्य पुरुष |
जिस समय ‘भारत-भारती’ निकली, उस समय तो लगा, जैसे राजनैतिक और सामाजिक विचारधारा में एक तूफान आ गया |
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46. |
उर्दू का सवाल |
द्विवेदी जी की प्रेरणा से—मैथिलीशरण गुप्त का ब्रजभाषा से खड़ी बोली में आना एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना माना जाता है पर मेरे विचार से प्रेमचंद का आत्म प्रेरणा से उर्दू को छोड़कर हिंदी में आना उससे किसी प्रकार कम महत्व नहीं रखता |
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47. |
भाई वीर सिंह : पंजाबी के महान कवि |
‘महान साहित्यकार भाई वीर सिंह’ की जैसी प्रशस्ति हजारीप्रसाद द्विवेदी जी ने की उसमें उनकी रवींद्र-भावना की छाया उतर आयी है | |
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48. |
कविता का छायावाद बनाम/ आलोचना का छायावाद |
पर्यायों के भीतर आकृति का बोध चित्रात्मकता को कविता के निकट ले आता था | आगे चलकर नयी कविता में यही बिम्बात्मकता का आधार बना | |
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49. |
परम्परा का सवाल और काव्य-भाषा |
परम्परा दृष्टि-सम्पन्न होकर ही सार्थक होती है और दृष्टि का प्रमाण विकृतियों के भीतर संघर्षशील प्राणवत्ता, विवेक तथा धैर्य से मिलता है | |
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50. |
प्रयोगवादी कविता और मानववाद |
नयी कविता मूलतः मानववादी है क्योंकि मानव-जीवन को सार्थकता प्रदान करनेवाले तत्वों पर उसकी दृष्टि ललक के साथ पड़ती है और निरर्थकता लानेवाले तत्वों पर व्यंग्य-प्रहार करना वह अपना मुख्य कर्तव्य समझती है |
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51. |
रवींद्रनाथ : कला-चिंतक के रूप में |
गाँधी जी ने जिस प्रकार भारतीय नैतिक दृष्टि को पुनः प्रतिष्ठित किया ठीक वैसे ही रवींद्रनाथ ने भारतीय सौंदर्य दृष्टि को पुनरुज्जीवन प्रदान किया | परिणामतः दोनों ही युग पुरुष के रूप में मान्य हुए| |
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52. |
मध्यकालीन मूल्यदृष्टि और तुलसीदास |
दो वस्तुओं को तुलसी ने अपने आराध्य परब्रह्म राम से भी बड़ा माना है और अपने मूल्यबोध में उन्हें सबसे ऊपर प्रतिष्ठित किया है | पहली वस्तु है राम का नाम और दूसरी वस्तु है राम का दास | |
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53. |
युग, साहित्य, राजनीति और राष्ट्रकवि माखनलाल चतुर्वेदी |
मुझे माखनलाल चतुर्वेदी के भीतर एक सजग, संवेदनशील चित्रकार-मूर्तिकार के दर्शन होते हैं विशेषतः “हिमकिरीटिनी” रूप में जब वे भारतमाता की काव्यमयी मौलिक कल्पना करने लगते हैं | |
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54. |
वर्तमान काव्य की प्रवृत्तियाँ |
मेरे विचार से वर्तमान हिंदी कविता की प्रमुख धारा— नयी कविता—छायावाद की रोमांटिक स्वप्निल रहस्योन्मुखता से मुक्त हो चुकी है, यद्यपि उसने उसके व्यक्तित्व को अपने में धारण कर लिया है | |
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55. |
निबंध गोष्ठी : आधुनिक साहित्य : कविता |
नयी कविता ने काव्य-रूप के संदर्भ में कोई घेरा नहीं बनाया| उसने मूलतः इस बात पर बल दिया कि सच्ची कविता अपना रूप स्वयं लेकर उपजती है | |
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56. |
पंत जी के जन्मदिवस पर |
वाद-मुक्त धरातल पर कविता को प्रतिष्ठित करने में नयी कविता का अभूतपूर्व योगदान रहा | प्रगतिवाद और प्रयोगवाद के आगे वाद-मुक्त धरातल को नयी कविता ने ही व्यापक समर्थन दिया जिसमें पंत जी, डॉ. रामकुमार वर्मा तथा महादेवी वर्मा का पूरा योगदान मुझे मिला |
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57. |
‘विवेचना’ में ‘शिला पंख चमकीले’ |
माथुर ने छंद की दृष्टि से भी उल्लेखनीय प्रयत्न किये | अन्य कवियों की अपेक्षा इस क्षेत्र में वे सजग रहे | इन्होंने छंदों को नयी लयों में प्रयुक्त किया और नये छंदों का भी प्रयोग किया | सवैया की गति को कई जगह माथुर ने अच्छी तरह से निबाहा है | |
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58. |
हिन्दी शोध : कुछ प्रतिक्रियाएँ |
गुरुवर डॉ. धीरेंद्र वर्मा से विनम्र निवेदन किया कि मेरी हार्दिक इच्छा ऐसा विषय लेने की है जिस पर कार्य करने में केवल हिन्दी-भाषी-क्षेत्र तक ही सीमित न रह जाना पड़े; भारत की किसी अन्य भाषा के साहित्य तक भी पहुँच हो सके | |
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59. |
रेखाचित्रों में,पत्रों में प्रभाकर माचवे |
“चित्रता और मित्रता के प्रतिरूप प्रभाकर माचवे” | वे रचनाधर्मी थे और उनकी यह वृत्ति निरंतर बहु-आयामी बनी रही | बहुभाषाविद् तो वे थे ही उन्हें बहुधा लोग जीवित कोश भी कह देते थे | |
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60. |
समय की स्मृति : जगदीश गुप्त |
पुस्तक: समय की स्मृति : लेखक : विश्वनाथ प्रसाद तिवारी |
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61. |
अर्धशती की कविता यात्रा और जगदीश गुप्त |
जगदीश गुप्त नई कविता आंदोलन से उसके आरंभ से ही सक्रियता से जुड़े रहे | आपने सन 54 से 67 तक अनियतकालीन ‘नई कविता’ नामक बहुचर्चित कविता अंको का संपादन किया जिससे शुरुआत से ही इस आंदोलन को एक नई दिशा मिली, मंच मिला, और उसका स्वरूप और काव्यशास्त्र का विकास-विस्तार हुआ, साथ ही कविता आंदोलन ने अपनी पहचान भी बनाई | नई कविता के आठ निकले जिसमें अंक 5 और 6 संयुक्तांक रहे और 1 से 8 अंक में यद्यपि जगदीश गुप्त को छोड़कर संपादक बदलते रहे जिसमें उन्हें डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी, विजयदेव नारायण साही के अतिरिक्त इन्हें सहयोगी के रूप में श्री राम वर्मा और प्रमोद सिनहा का भी संपादन सहयोग मिला | |
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62. |
गुजरात और मध्यदेश का सांस्कृतिक सम्बन्ध |
गुजराती और ब्रजभाषा कृष्ण-काव्य में वस्तुगत, भावगत और विचारगत जो व्यापक साम्य मिलता है वह दोनों भाषाओं से सम्बद्ध प्रदेशों की सांस्कृतिक एकता का परिणाम है। यत्र-तत्र जो थोड़ा-सा वैषम्य प्राप्त होता है वह दोनों प्रदेशों की संस्कृति का क्षेत्रीय विशेषताओं पर आधारित है। सारी परिस्थिति पर गम्भीरतापूर्वक विचार करने से ज्ञात होता है कि साम्य आन्तरिक है और वैषम्य अपेक्षाकृत बाह्य | इस साम्य और वैषम्य में गुजरात तथा ब्रज की भौगोलिक स्थिति का बहुत बड़ा हाथ रहा है जिसके कारण दोनों का सांस्कृतिक सम्बन्ध इतनी मात्रा में सम्भव हो सका। |
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