शब्द दंश
आज कविता का आग्रह सौंदर्य की अपेक्षा सत्य पर अधिक दिखायी दे रहा है |
सुप्रसिद्ध कवि,चित्रकार,समीक्षक,पुरातत्वविद्, नयी कविता के प्रवर्तक डॉ.जगदीश गुप्त के नाम से हिंदी साहित्य जगत भली-भाँति परिचित है | नयी कविता के “सैद्धांतिक पक्ष” को लिपिबद्ध करने में डॉ.जगदीश गुप्त का अप्रतिम योगदान रहा | नयी कविता के ‘तीनों खंडों’ का सम्पादन डॉ.गुप्त, डॉ.रामस्वरूप चतुर्वेदी,विजय देव नारायण साही ने संयुक्तरूप से किया | आपका ब्रजभाषा से भी विशेष लगाव रहा| साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी एवं मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने “भारत-भारती” व म.प्र.सरकार ने “मैथिलीशरणगुप्त” से सम्मानित किया| आपकी ब्रजभाषा की छंदशती और छंद-बीथी प्रमुख चर्चित पुस्तकें है | अब तक लगभग दो दर्जन से अधिक हिंदी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं | कला और पुरातत्व के क्षेत्र में “भारतीय कला के पदचिन्ह” और “प्रागैतिहासिक भारतीय चित्रकला” विशेष महत्व रखती हैं |Read More
अशक्य
करने को—
चाहूँ तो सब का निषेध कर सकता हूं
कवि का
कविताओं का
चित्रों का
मित्रों का
अंदर बाहर फैली स्वार्थ-भरी गंधो का
सीधे-तिरछे, उलझे-सुलझे सम्बंधों का
अंपेक्षित दूरी का
अपने ही पास न रहने की मजबूरी का
—लेकिन
यह भीतर जो द्रष्टा है
ममतामय
ममतामय[स्यात वही स्रष्टा है ]
झींख- झींख हारा
सर मारा
पर किसी तरह
उसका निषेध नहीं होता है |
आँसुन मैं उतरी बरखा,
पुतरीन पै छाइ रही जल-चादर |
एक ही संग निगाहन माहिं,
समाइ गये दुऔ सावन-भादर |
कोयन झाँकि रहीं बिजुरी—
जुरि,नाद रह्यो हियरो करि कादर |
बावरे नैनन बीच रहे घिरि,
साँवरे रावरे रूप के बादर