डॉ.जगदीश गुप्त का जन्म 5जुलाई 1926 श्रावण मास शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन विक्रम संवत 1982 को तहसील शाहाबाद जिला हरदोई,उत्तर प्रदेश में हुआ था | इसी दिन प्रख्यात राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त जी का जन्म भी हुआ था | आपके पिता शिव प्रसाद गुप्त पेशे से जमींनदार वा सनातन संस्कृति को माननेवाले थे | आपकी माता श्रीमती रामा देवी के भाई मसूरी स्थित कॉर्लटन होटल में मैनेजर थे |
बाल्यकाल में जगदीश गुप्त ने शैक्षिक व कलात्मक शिक्षा अपनी माँ द्वारा समय-समय पर सुनायी गयी लोक कथाओं, लोकगीतों, दोहे, भजन आदि से प्राप्त की |
जगदीश गुप्त जब छठवीं कक्षा में थे तभी पिता का देहांत हो गया | छ्ठवीं तक कि शिक्षा शाहाबाद में प्राप्त करने के बाद आठवीं तक की शिक्षा देहरदून व सीतापुर में प्राप्त की | शाहाबाद व सीतापुरमें उन दिनों बच्चों के बीच रामचरित मानस के चौपाई दोहे,ब्रजभाषा के छंद व सवैयों की अंत्याक्षरी आयोजित हुआ करती थी| इस प्रतियोगिता में बराबर भाग लेनें के कारण बालक जगदीश गुप्त को बहुत सारे छंद, दोहे व सवैये याद हो गए | हाईस्कूल की परीक्षा मुरादाबाद के हिंदू कालेज से उत्तीर्ण करने के पश्चात डॉ.गुप्त ने कानपुर के बी.एन.एस.डी कालेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा गणित विषय मे 95% अंक प्राप्त कर उत्तीर्ण की | इस परीक्षा में उनको पूरे प्रदेश में तृतीय स्थान प्राप्त हुआ | पिता की मृत्यु के बाद इनका जीवन काफी संघर्ष पूर्ण रहा | पितृ-पक्ष की इच्छा थी कि वह शाहाबाद में रह कर जमींदारी का काम सभालें परन्तु माता की इच्छा उच्च शिक्षा देने की थी | माता जी ने तमाम संघर्षों का सामना किया और उनको अपने रिश्तेदारों, अध्यापकों, शुभ चिंतकों की मदद से उच्च शिक्षा दिलाई | वर्ष 1943 में गुप्त जी प्रयाग विश्वविद्यालय आये और बी.ए कक्षा में प्रवेश लिया तथा 1945-47 में एम.ए हिन्दी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की | डॉ गुप्त ने चित्रकला और संस्कृत में डिप्लोमा भी किया|
आपको इंटरमीडिएट परीक्षा में सम्मान सहित प्राप्त होने के कारण गुप्त जी को ए.एन.झा छात्रावास में स्थान मिल | उस वक्त हॉस्टल के वार्डन प्रख्यात शिक्षाविद् पंडित अमरनाथ झा महोदय थे |इस दौरान डॉ गुप्त ने अपनी शिक्षा का काफी खर्च महादेवी जी सहित तमाम वरिष्ठ साहित्यकारों की पुस्तकों का कवर डिजाइन से प्राप्त धन से उठाया| हिन्दी विभाग से ही इन्होंने एम.ए,डी.फ़िल. की डिग्री प्राप्त की | इनके शोध प्रबंध का विषय “ गुजराती और ब्रजभाषा कृष्णकाव्य का तुलनात्मक अध्ययन” था | इस शोध प्रबंध का निर्देशन डॉ धीरेंद्र वर्मा जी ने किया |इस शोध को पूर्ण करने के लिये जो भी यात्रा की गयी उसका व्यय भार महादेवी जी ने साहित्यकार संसद से आर्थिक सहायता दिला कर हलका किया था |
1950 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में अध्यापन कार्य शुरु किया एवं कई वर्षों तक विभागध्यक्ष रह कर 1986-87 में अवकाश प्राप्त किया; तदुपरांत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की उच्च शोध की विशेष योजना के अंतर्गत कार्यरत रहे |
डॉ.गुप्त की काव्ययात्रा के तीन महत्वपूर्ण पक्ष हैं— 1- पारम्परिक ब्रजभाषा कविता, 2- नई कविता 3-समकालीन कविता | गुप्त जी सनेही मंडल से घनिष्टता से जुड़े रहे | गुरू और वरिष्ठ ब्रजभाषा कवि डॉ.रामशंकर शुक्ल रसाल उनके प्रेरक व पथ प्रदर्शक रहे |
डॉ.गुप्त इलाहाबाद में ही केंद्रित रहे| वह परिमल संस्था से जब जुड़े तब उत्तर छायावाद और प्रगतिवाद का दौर था| डॉ.गुप्त ने इस काव्य धारा में एक नए परिवर्तन का सूत्रपात किया |उन्होंने डॉ.राम स्वरूप चतुर्वेदी के साथ ‘नयी कविता’ नामक पत्रिका शुरू की| नई कविता का संस्कार इसी पत्रिका के माध्यम से हुआ |बाद में ‘नयी कविता’के तीन खंड जगदीश गुप्त,रामस्वरूप चतुर्वेदी व विजय देव नरायण साही के सम्पादकत्व में प्रकाशित हुए |
नई कविता धारा में डॉ.गुप्त ने सपाट बयानी की जगह बिम्बधर्मी और प्रतीकबहुला कविताओं की रचना की |नाँव के पाँव, युग्म, शब्द दंश, हिमविद्ध, में यह प्रवृत्ति विशेष रूप से लक्षित होती है |इन कविताओं के द्वारा डॉ.गुप्त ने नयी कविता को भरसक,गद्यात्मक होनेसे बचा लिया और उन्हें गेय बनाया |यति, गति और लय का निर्वाह किया | साथ ही कविता को सपाटता से मुक्त कर दिया और उसे रागात्मक चेतना से जोड़ा | उसमें प्रकृति चेतना की कई रूप छवियाँ अंकित की हैं जिन्हें देख कर नव्य छायावादी सौंदर्यबोध पुनर्जीवित हो उठा हो उन्हों ने छंद के लय के साथ अर्थ की लय का पुरजोर समर्थन किया |
डॉ.गुप्त एक सफल चित्रकार थे| इसलिए उन्होंने चित्रमय काव्य की परम्परा को पुनर्जीवित किया | हिंदी काव्यधारा में महादेवी जी ने चित्र और काव्य का जो अंतः सम्बंध स्थापित किया उसका अगला विकास गुप्त जी की कविताओं मे दिखाई देता है|
चिन्तक डॉ.गुप्त ने पुराख्यान से जुड़े हुए चरित्रों के साथ ही कई कथावृतों का पुनर्पाठ प्रस्तुत किया |इनसे सम्बंधित प्रमुख प्रबंध काव्य कृतियाँ— शम्बूक, गोपा-गौतम, शान्ता, जयंत हैं | इन काव्यों के प्रतिपाद्य अपेक्षाकृत विचारोत्तेजक है |शान्ता नामक पात्र हिंदी जगत के लिए अपरिचित है | उसे सम्वाद काव्य के रूप में प्रस्तुत करके कवि ने एक भूले-बिसरे चरित्र का उद्धार किया है | ‘ शम्बूक ’ दलित चेतना से प्रेरित और प्रभावित है| गोपा-गौतम मे मनोलोक के अंकन का प्रयास अपनी जगह महत्वपूर्ण है| ‘जयंत’ के सम्बंध में यही स्थिति है |ये पात्र कोटि-कोटि जन आस्था से जुड़े हुए हैं |इसलिये इनके तथ्यों का रहस्योद्घाटन का साहस हर व्यक्ति नहीं कर सकता |यहाँ गुप्त जी का परम्परा-भंजक रूप दिखाई पड़ता है | उनकी समकालीनता से प्रेरित ‘आक्रोश के पंजे’,क्षुब्ध मन की उपज है | उनका कहना था “ कवि वही जो अकथनीय कहे ” |
“माँ के लिए” डॉ.गुप्त का शोक गीत है | सही अर्थों में कवि ने माँ के प्रति आस्था व्यक्त की है | उनके व्यक्तित्व विधायन में उनकी माँ की बड़ी भूमिका रही है |
डॉ.गुप्त का काव्य जगत बहुत विशद् है |